छऊ नृत्य मतलब ”Chhau Dance” , झारखण्ड के अनेक लोक नृत्यों में सबसे खास है। इस नृत्य की उत्पत्ति झारखण्ड से ही हुई और पुरे विश्व भर में प्रचलित भी हुई।
झारखण्ड राज्य में भी हर राज्यों की भांति अनेकों नृत्य की समृद्ध परंपरा मिलती हैं। यहाँ कई तरह के नृत्य प्रचलित हैं जिनकी व्यापकता घरेलु समारोहों से लेकर पर्व त्योहारों तक है।
उनमें से ही एक प्रमुख लोक नृत्य है , छऊ नृत्य जिसे लोग छौ- नाच से भी जानते हैं। तो आज हम जानने वाले है इस खास लोक नृत्य के बारे में।
क्या है छऊ नृत्य ?
दरअसल छऊ नृत्य झारखंड राज्य का एक लोक नृत्य है जो की पुरुष प्रधान नृत्य है । यह नृत्य पूर्वी भारत में प्रचलित एक मुखौटा नृत्य है । इस नृत्य को अधिकतर घरेलू समारोहों में तथा पर्व त्योहारों में देखने को मिलता है ।
छऊ नृत्य का इतिहास
छऊ नृत्य का जन्म झारखण्ड के सरायकेला जिले में हुई है। सराईकेला जिला से ही छऊ नृत्य की उत्पत्ति हुई है। यहाँ से यह नृत्य मयूरभंज (उड़ीसा ) एवं पुरुलिया (पश्चिम बंगाल ) तक में फैला। अभी यह नृत्य सरायकेला , मयूरभंज एवं पुरुलिया जिले का मुख्य लोक नृत्य भी है।
छऊ नृत्य को सरायकेला रियासत का संरक्षण प्राप्त था क्योकि इसका जन्म सराईकेला जिले में ही हुआ था।
छऊ नृत्य का विदेशी सफ़र
छऊ नृत्य झारखण्ड पुरे झारखण्ड में फैलने के बाद यह लोक नृत्य विदेशों में भी पहुंचा। इसे पहुँचाने वाले सरायकेला के राजकुमार सुधेन्दु नारायण सिंह थे। इस नृत्य का विदेश( यूरोप ) में सर्वप्रथम प्रदर्शन 1938 ई में सरायकेला के राजकुमार सुधेन्दु नारायण सिंह ने करवाया था।
छऊ नृत्य का संरक्षण
1947 ई. में स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद बिहार सरकार ने इस नृत्य को संरक्षण दिया एवं देश विदेश में इसके प्रदर्शन की व्यवस्था की। 2000 ई. में झारखण्ड राज्य बन जाने के बाद इस नृत्य के संरक्षण की जिम्मेदारी झारखण्ड सरकार के हाथ में आ गयी है।
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छऊ नृत्य (Chhau Dance) की विशेषताएं
छऊ नृत्य में पौराणिक व ऐतिहासिक कथाओं के मंचन के लिए पत्र तरह तरह के मुखौटे धारण करते हैं। रंग-बिरंगे मुखौटे , अनोखे वेश , कलात्मक व तेज़ अंग-संचालन और बिना संवाद के अभिनय द्वारा भाव व्यक्त करना तथा पूरी कथा को समझना इस नृत्य की महत्वपूर्ण विशेषताएं हैं।
छऊ नृत्य की दो धाराएं हैं :- हतियार धारा व काली भंग धारा
हतियार धारा में वीर रस की प्रधानता होती है वहीं काली भंग धारा में श्रृंगार रस की प्रधानता होती है। हतियार धारा (वीर रस प्रधान धारा ) जिसमें ओज गुण होता है अपेक्षाकृत अधिक लोकप्रिय है। यह पुरुष प्रधान नृत्य है।
छऊ नृत्य राज्य में होने वाले होने वाले अन्य लोक नृत्यों से भिन्न हैं : –
पहली बात , राज्य के अन्य लोक नृत्यों में सिर्फ भावभिव्यक्ति होती है पर उनके साथ कोई प्रसंग या कथानक नहीं होता पर छऊ नृत्य में प्रसंग या कथानक हमेशा मौजूद रहता है ।
दूसरा , अन्य लोक नृत्यों के संचालन में किसी गुरु या प्रशिक्षक की उपस्थिति अनिवार्य नहीं होती लेकिन छऊ नृत्य में गुरु या प्रशिक्षक की उपस्थिति अनिवार्य मानी जाती है ।
इसके अलावा झारखंड के लोक नृत्य में यह अकेला नृत्य है जो सिर्फ दर्शकों के लिए प्रदर्शित किया जाता है । कुल मिलाकर यह झारखंड का सबसे प्रसिद्ध लोक नृत्य है तथा इसे भारतनाट्यम , कत्थक , मणिपुरी आदि की तरह राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पहचान और सम्मान प्राप्त है।
देश-विदेश से लोग इसे सीखने के लिए सरायकेला जिला भी आते हैं।
छऊ नृत्य के लिए पद्म पुरस्कार
छऊ नृत्य के लिए झारखण्ड के कई कलाकारों को इसे पुरे विश्व भर में प्रदर्शित व फ़ैलाने के लिए पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित भी किया गया है। पद्म श्री से सम्मानित कलाकारों की लिस्ट :-
छऊ कलाकार | सम्मानित वर्ष |
पंडित गुरु श्याम चरण पति | 2006 |
श्री मकर ध्वज दरोगा | 2011 |
पंडित श्री गोपाल प्रसाद दुबे | 2012 |
श्री शशाधर आचार्य | 2020 |
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तो यह थी कुछ जानकारी अपने झारखण्ड के लोक नृत्यों में सबसे प्रसिद्द छऊ नृत्य के बारे में। तो आज हमने जाना छऊ नृत्य का इतिहास , इसका विदेशी सफर ,इसके संरक्षण, इसकी विशेषता तथा छऊ नृत्य को विश्व भर में प्रदर्शित करने वाले कलाकारों के बारे में जो पद्म पुरस्कार से भी सम्मानित किए गए है उनके बारे में ।
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छऊ कहां का लोक नृत्य है ?
छऊ नृत्य झारखंड के सभी लोक नृत्यों में सबसे प्रसिद्ध लोक नृत्य है ।यह लोक नृत्य झारखंड के साथ साथ (पुरुलिया) पश्चिम बंगाल तथा मयूरभंज (उड़ीसा) में भी प्रसिद्ध है ।
छऊ नृत्य की विशेषता क्या है ?
छऊ नृत्य पुरुष प्रधान नृत्य है । इस नृत्य में नर्तक अलग अलग मुखौटा लगा कर पौराणिक व ऐतिहासिक कथाओं का मंचन किया जाता है । इस नृत्य में नृत्य करने वाले बिलकुल मौन रहते हैं इसके बावजूद वह पूरी कथा को समझ लेते हैं। दरअसल इनके पीछे संवाद सचलन के लिए दूसरे कलाकार रहते हैं जो पूरी कथा को व्यक्त करते हैं ।
यह सब छऊ नृत्य को बाकी लोक नृत्यों से खास बनाता है ।
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