हेलो दोस्तों कैसे हो आप सब ? उम्मीद है सभी स्वस्थ ही होंगे । तो आज हम झारखंड के प्रमुख त्योहारों में से एक करम/करमा/कर्मा पर्व ( Karma Festival ) के बारे में विस्तार से जानेंगे ।
साथ ही साथ यह भी जानेंगे कि करमा पर्व कब और कहां कहां मनाया जाता है , किन किन राज्यों में मनाया जाता है , क्यों मनाया जाता है तथा यह भी जानेंगे कि कर्म पर्व मनाने के पीछे क्या कहानी है क्या मान्यताएं हैं ।
क्या है करम पर्व ?
तो सबसे पहले जानते हैं करमा पर्व क्या है ? हम सब यह जानते हैं कि झारखंड राज्य है वह प्रकृति से कितना जुड़ा हुआ है तो जाहिर सी बात है कि प्रकृति को मानने वाले भी जरूर होंगे ।
करमा पर्व एक प्राकृतिक पर्व है जो कि झारखंड , उड़ीसा , छत्तीसगढ़ , बिहार , पश्चिम बंगाल तथा असम राज्य में मनाया जाता है । यहां के आदिवासी तथा मूलवासी लोग इस त्योहार को बड़े ही धूमधाम तथा हरसोल्लास के साथ मनाते हैं ।
करमा पर्व कब मनाया जाता है
कर्मा पर्व भाद्रपद के शुक्लपक्ष के एकादशी को मनाया जाता है । यह पर्व बहनें अपने भाइयों के लिए मनाती हैं जो उनके पवित्र संबंध और अटूट प्रेम को दर्शाता है।
करमा पर्व क्यों मनाया जाता है
झारखंड राज्य में यह दूसरा सबसे बड़ा प्राकृतिक पर्व करम पर्व होता है जिसे इस कामना से मनाया जाता है कि लगाया गया फसल अच्छा हो और पहला सबसे बड़ा प्राकृतिक पर्व है सरहुल जिस समय पेड़ पौधों में नए-नए फूल और पत्तियाँ आना शुरू होती हैं उसी समय सरहुल पर्व मनाया जाता है।
साल /सखुवा के पेड़ों पर इसके फूल हर ओर अपनी सुन्दरता बिखेर देती है ,सरहुल में अच्छी बारिश के लिए पूजा किया जाता है।
जब अच्छी बारिश होती है तब किसान अपनी फसल लगाते हैं और फसल का कार्य समाप्त होने की खुशी में करमा पर्व को मनाया जाता है । साथ ही बहने अपने भाइयों के लिए सुरक्षा के लिए प्रार्थना करती हैं कर्मा पर झारखंड के लोग ढोल व मांदर की थाप पर झूमते गाते हैं ।
करमा पर्व को आदिवासी संस्कृति का प्रतीक भी माना जाता है। कर्मा पूजा पर्व आदिवासी समाज का एक प्रचलित त्यौहार है । इस परवाह में एक खास नृत्य भी किया जाता है जिसे करमा नृत्य भी कहा जाता है ।
कर्मा पर्व कैसे मनाया जाता है
इस पर्व को खासकर कुंवारी लड़कियां ही मानती हैं । इस पर्व में बहनें अपने भाइयों के सुरक्षा के लिए उपवास रखती हैं जिन्हें ” करमैती / करमइती ” कहा जाता है । इस पर्व को मनाने के लिए करमैती 3 , 5 ,7 या 9 दिन का उपवास करती हैं तथा बिलकुल सदा भोजन करती हैं ।
सबसे पहले दिन करमैती किसी नदी , तालाब ,या किसी डोभा किनारे से एक बांस के डालिया में ” बालू /बाला ” उठाती हैं । इसमें ( कुलथी , चना, जौ, तिल , मकई, उरद , सुरगुंजा ) के बीजों के डालिया में डाल दिया जाता है जो छोटे छोटे पौधों के रूप में उगते हैं जिसे ” जावा ” कहते हैं ।
करमैती 3 , 5, 7 अथवा 9 दिन तक जावा को सुबह और शाम में जावा गीत गाकर तथा करम नृत्य कर जगाती हैं ।
दशमी के दिन करम राजा को निमंत्रण देने के लिए जाना पड़ता है। निमंत्रण वही देने जाता है जो उपासक होता है, करम वृक्ष के पूरब तरफ़ के दो चंगी वाले डाली को माला से बांधा जाता है और करम देवता को बोला जाता है कि हमलोग कल ढोल-नगाड़े के साथ आएंगे आपके पास आपको हमारे साथ चलना होगा।
निमंत्रण देने के समय ले जाने वाले डलिया में सिंदूर, बेल पत्ता, गुंड़ी (अरवा चावल को पीसकर बनाया जाता है) सुपारी, संध्या दीया आदि रहता है।
एकादशी के दिन सुबह ही सभी लड़कियां (करमइती) फुल लहरने (फूल तोड़ने )के लिए अपने आस-पास के जंगल में चली जाती हैं। फूल, पत्ता, घास, धान इत्यादि जो – जो मिलता है सबको एक नया खांची ( बांस का बना हुआ बड़ा सा टोकरी) में भर देते हैं।
करम पूजा का नियम
वैसे तो झारखंड में होने वाले प्राकृतिक जितने भी पर्व है सभी ” पाहन ” द्वारा ही किया जाता है । पर करम पर्व में कई जगहों पर ब्राह्मण भी इसकी पूजा करवाते हैं ।
पूजा शुरू होने से पहले पाहन जंगल से करम वृक्ष की शाखा को आंगन के बीच में लगाया जाता है । करम शाखा को लगाने के समय में भी अलग गीत भी गाया जाता है ।
करमा के वृक्ष से डाल को कुल्हाड़ी से एक ही बार में कटा जाता है तथा इसे जमीन पर गिरने नही दिया जाता है । इसे जंगल से लाने के बाद घर के आंगन या अखरा के बीचों-बीच लगा दिया जाता है । करमा पूजा के दिन करमा के छोटे – छोटे डाल खेत-खलिहान तथा घर में रोपित किया जाता है ।
कर्मा वृक्ष रोपित होने के बाद पूजा के समय गांव के सारे गन्य – मान्य व्यक्ति तथा बूढ़े – बुजुर्गों, माताएं- बेटियां , भाई – बहन सब कोई पूजा देखने व सुनने के लिए वहां पर उपस्थित हो जाते हैं।
पूजा के समय करमैती करम वृक्ष के चारो ओर आसन पर बैठ जाती हैं । इसे प्रकृति के आराध्य देव मानकर पूजा करते है। और बहने अपने भाइयों के लिए स्वास्थ्य रहने और सुरक्षा की कामना करते हैं ।
पूजा के दौरान पाहन द्वारा करमा-धरमा की कहानी भी सुनाया जाता है जिसमे यह बताया जाता है की कर्म पर्व कब से मनाना शुरू किया गया ।
पूजा होने के बाद करमैती अपना उपवास तोड़ती हैं ।उसके बाद सभी करमैती तथा आसपास तथा घर के लोग खूब नाच गान करते हैं। मांदर के साथ साथ नगाड़े की थाप पर सभी थिरकते है । करम नृत्य करते है और हरसोल्लास के साथ करमा पूजा मानते हैं ।
पाहन द्वारा पूजा समाप्त होने के बाद अगले दिन सुबह करमैती करम वृक्ष के डाल को पूरे धार्मिक रीति रिवाज के साथ तालाब , पोखर या नदी में पूरे गीत गाते और नृत्य करते हुए विसर्जित कर देते हैं ।
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करमा-धरमा ( कर्मा -धर्मा / कर्म-धर्म ) की कहानी
करमा धरमा से जुड़ी कई सारी कहानियां प्रचलित हैं। उनमें से एक यह भी है ।
करम पूजा की जो कथा है वह दो भाइयों की है । माना जाता है की करमा और धरमा दो भाई थे । दोनों खूब मेहनती व दयावान थे । कुछ दिन बाद करमा का विवाह हो गया । उसकी पत्नी ” अधर्मी ” दूसरे को परेशान करने वाले विचारों की थी ।
यहां तक कि वह धरती मां के ऊपर ही चावल का गर्म पानी ( माड़ ) गिरा दिया करती थी । जिसे देख कर्म को बहुत दुख हुआ । यह देख वह धरती मां की पीड़ा से वह बहुत नाराज हुआ और नाराज होकर घर से चला गया ।
उसके जाते ही सभी के भाग्य फूट गए । दुख के दिन आ गए और वहा के लोग दुखी रहने लगे। लोगों की यह पीड़ा को देखकर भाई धर्मा को खोजने निकल पड़ा ।
कुछ दूर चलने पर उसे प्यास लग गई , आस पास कुछ न था ,दूर में एक नदी दिखाई दिया । पास जाने पर उसने देखा कि उसमे पानी नहीं है । नदी ने धर्मा से कहा की ” जब से कर्म भाई यहां से गए हैं तब से हमारे कर्म फूट गए हैं , यहां का पानी सुख गया है। ” यह नदी ने धर्मा से कर्मा को कहने को कहा ।
कुछ दूर जाने पर एक आम का पेड़ मिला उसके सारे फल सड़ हुए थे । उसने भी धर्मा से कहा कि जब से कर्मा गए हैं तब से हमारा फल ऐसे ही बर्बाद हो जाता है। और आम के पेड़ ने यह भी कहा की अगर कर्मा भाई मिले तो उनसे यह सब बताइएगा और इसका क्या निवारण क्या है यह भी पूछ कर बताइएगा ।
धर्मा वहा से आगे बढ़ा , आगे बढ़ने पर उसे एक वृद्ध व्यक्ति मिला ,उसने धर्मा को बताया कि जब से कर्मा यह से गया है उनके सर से बोझ तब तक नहीं उतरते जब तक 3 4 लोग उसे न उतार देते । वृद्ध व्यक्ति ने भी कर्मा से इसका निवारण का उपाय जानने को कहा ।
आगे बढ़ने पर धर्मा को एक महिला मिली जो कर्मा से यह जानने के लिए बोलीं की जब से कर्मा गए है तब से खाना बने के बाद बर्तन हाथ से चिपक जाते हैं तो इसके लिए क्या उपाय करें ।
धर्मा आगे चल पड़ा , चलते-चलते रेगिस्तान में जा पहुंचा वहां उसने देखा कि कर्मा धूप व गर्मी से परेशान है । उसके शरीर पर फोड़े हो गए हैं , वह व्याकुल हो रहा है ।
धर्मा से उसकी हालत देखी नहीं गई । और उसने कर्मा से आग्रह किया की वह घर वापस चले । तो इसका जवाब कर्मा ने दिया की मैं उस घर कैसे जाऊं जहां मेरी पत्नी जमीन पर माड़ ( चावल का गर्म पानी ) फेंक देती है । तब धर्मा ने वचन दिया की आज के बाद कोई भी महिला जमीन पर माड़ नही फेकेंगी ।
फिर दोनो भाई घर की ओर वापस चले तो सबसे पहले वह महिला मिली ,तो उससे कर्म ने कहा कि तुमने किसी भूखे को खाना नहीं खिलाया था इसलिए तुम्हारे साथ ऐसा हुआ । आगे से ऐसा कभी मत करना सब ठीक हो जायेगा ।
अंत में कर्मा नदी पर पहुंचा तो उससे कहा कि तुमने कभी किसी को साफ पानी पीने के लिए नहीं दिया । आगे से कभी किसी को गंदा पानी मत पिलाना यदि तुम्हारे पास कोई आए तो उसे साफ पानी पिलाना ।
इस प्रकार उसने सभी को कर्म बताते हुए घर आया और पोखर में कर्म /करम का डाल लगाकर पूजा किया । उसके आते ही पूरे इलाके में खुशहाली लौट आई और सभी आनंद से रहने लगे ।
कहते है की उसी को याद कर आज कर्मा पर्व मनाया जाता है ।
तो आज हमने जाना कुछ झारखंड के प्राकृतिक त्योहार करमा पर के बारे में । आपको यह जानकारी कैसी लगी हमें बताएं एक कमेंट में या फिर हमसे जुड़े सीधे हमारे इंस्टाग्राम और फेसबुक पेज पर ।
करमा पूजा कब है ?
करमा पूजा 2023 में 25 सितम्बर को मनाया जा रहा है।
करमा पूजा कब मनाया जाता है ?
करमा पर्व भाद्रपद के शुक्लपक्ष के एकादशी को मनाया जाता है।
Karma Puja 2023 in Hindi
करमा पर्व एक प्राकृतिक पर्व है जो कि झारखंड , उड़ीसा , छत्तीसगढ़ , बिहार , पश्चिम बंगाल तथा असम राज्य में मनाया जाता है । यहां के आदिवासी तथा मूलवासी लोग इस त्योहार को बड़े ही धूमधाम तथा हरसोल्लास के साथ मनाते हैं ।
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