झारखंड उस अमूल्य धरोहर का नाम है जहां आज भी 21वीं सदी की भाग दौड़ में फंसी मानव शैली को सहज की प्राकृतिक सुषमा का आभास का हो जाता है ।
जहां आज भी वैज्ञानिक युग में झरनें , पहाड़ , वन और वन में जीव से वो सच्चाई है जिसकी ममतामय गोद में इस राज्य की आबादी आबाद है ।
और जहां आज भी आधा से ज्यादा प्राकृतिक संकटों का मोल फूल , पत्तियों और वन में जीवों के आपसी तालमेल की आवाज़ों से ही हर लेती हैं। जिसके वर्णन के लिए पर्यटकों के पास भी शब्द नहीं होते हैं ।
आज कौन मानेगा की 100 साल पहले बाघ लाखों की तादात में जीते थे और अपने होने का दम दहाड़ रहे होते थे । 10 से 12 साल पहले बाघों की ये तादात घटकर 3600 हो गई और 2008 में ये संख्या 1411 का पहुंची ।
2005 के सरकारी आंकड़ों के मुताबिक राजस्थान के सरिस्का टाइगर रिजर्व में मौजूद सभी 26 बाघ विलुप्त हो गए । 8 साल पहले टाइगर स्टेट के नाम से जाने जाने वाले मध्य प्रदेश के पन्ना टाइगर रिजर्व में मौजूद 44 बाघ आज की तारीख में इतिहास हो गए।
बाघों को बचाने के लिए बनी नेशनल टाइगर कन्वेंशन अथॉरिटी की एक रिपोर्ट बताती है कि 2007 में 41 और 2008 में 53 बाघ देश भर में मौत की नींद से गए और 2009 के पहले 6 महीने में ही 45 बाघ मर गए और साल के जाते – जाते ये संख्या 86 पहुंच गई ।
भारत में बाघों को वास्तविक आबादी को बरकरार रखने के लिए तथा हमेशा के लिए लोगों की शिक्षा व मनोरंजन के हेतु राष्ट्रीय धरोहर के रूप में बाघों के जैविक महत्व के क्षेत्रों के परिरक्षित रखने के उद्देश्य से केंद्र द्वारा प्रायोजित बाघ परियोजना वर्ष 1973 में शुरू की गई थी ।
जिससे कि राष्ट्र के भावी पीढ़ियों को अपनी मौजूदगी से गौरवान्वित करता रहे ।
बेतला राष्ट्रीय उद्यान का निर्माण
बाघों को सुरक्षित बचा के रखने के लिए झारखंड में व एक अभ्यारण्य बनाया गया । जो कि लातेहार जिला स्थित बेतला राष्ट्रीय उद्यान का निर्माण करवाया गया । यह अभ्यारण्य मुख्य रूप से बाघों को बचाने के नाम पर प्रसिद्ध है ।बेतला नेशनल पार्क 1974 में स्थापित भारत के पहले बाघ अभ्यारण्यों में से एक है ।
इसे पलामू टाइगर रिजर्व के नाम से भी जाना जाता है । बाघों के साथ साथ और भी कई सारे जानवर यहां देखने को मिलते हैं ।यह पार्क लगभग 18 से 20 किमी तक में फैला हुआ है ।
जो कि सैलानियों को लंबे समय तक घूमने के लिए रोमांचित करता है । पर शाम होने पर अंधेरा काफी हो जाता है जिसके कारण अंधेरा होने से पहले ही सैलानियों को वापस बाहर ले आया जाता है।
बेतला राष्ट्रीय उद्यान पहुंचने के मार्ग / Way to Betla National Park
सुंदर वनों से आच्छादित , औषधीय पौधों और जीवों की बहुतायत को खुद में समेटा यह अभ्यारण्य बेतला नेशनल पार्क डाल्टनगंज से 25 किमी , लातेहार जिले से 70 किमी और राज्य रांची से 170 किमी की दूरी पर स्थित है ।
बेतला उद्यान में प्रवेश नियम
यहां पर एक नियम है कि सैलानी को बड़े वाहन में आने पर ही अपने वाहन को लेकर अंदर प्रवेश करने की अनुमति होती है। जो पर्यटक छोटे वाहन में आते है उनको अपने गाड़ी को पार्क के बाहर ही लगाना पड़ता है और सैलानियों के लिए बड़े वाहनों का प्रबंध किया जाता है ।
सैलानी केवल बड़ी गाड़ी में ही उद्यान में प्रवेश कर सकते है । सैलानियों को बिना गाइड के अंदर जाने की अनुमति नहीं होती है ।
बेतला राष्ट्रीय उद्यान की सैर
सैलानियों की सुविधा और सुरक्षा के दृष्टिकोण से विभागीय स्तर पर कई सहूलियतें प्रदान की जाती हैं। जिनमें उचित दरों पर गाड़ियों की उपलब्धता के साथ ही हाथियों के सवारी भी शामिल है । जिससे सैलानियों आसानी से अभ्यारण्य के नैना – विराम दृश्यों को अपने जहन में और कैमरे में कैद कर सकते हैं।
बेतला राष्ट्रीय उद्यान में प्रवेश करने के बाद सड़क के दोनों ओर सूखे पत्तियों को पंक्ति में जमा कर जलाया हुआ दिखता है। ऐसा ही इसलिए किया गया है अगर किसी के भूल से आग लग भी जाए तो इन पत्तियों तक ही सीमित होकर आग बुझ जाए ।जि
जिससे पूरे जंगल को छती ना पहुंचे और उद्यान में रहने वाले जीव जानवर सुरक्षित रह सके । जगह जगह पर गड्डे खोदे गए है जिसमें जानवर जाकर पानी पी सकें ।
आगे बढ़ने पर मधुचुआं वॉच टॉवर देखने को मिलता है । जहां पर आने वाले पर्यटक /सैलानी बेतला के विशाल वन संप्रदा और वन्य जीवों का दीदार करते हैं । यहां पर से सभी तरह के जानवर झुंड के झुंड में देखने को मिलते हैं ।
यहां से हाथी , हिरण , बारहसिंगा , बंदर , भालू आदी कई तरह के जानवर झुंड में पार होते दिखाई पड़ते है। इनका एक साथ झुंड में विचरण करना हमें एकता में रहने का भी सीख देती है ।
जानवर साथ सड़क के अगल बगल के पेड़ों पर कई सुंदर मनमोहक पंक्षियां भी देखने को मिलती हैं । उनमें से मोर काफी आकर्षित करने वाली होती हैं।
क्या नया है बेतला उद्यान में ?
हाल ही में बेतला राष्ट्रीय उद्यान में सैलानियों के लिए बोटिंग की भी सुविधा उपलब्ध कराई गई है। जिससे सैलानी अपने पूरे परिवार के साथ बोटिंग का भी लुफ्त उठा सकें।
बेतला राष्ट्रीय उद्यान सैलानियों के लिए सुरक्षित या नहीं ?
Is Betla National Park/ Wildlife Sanctuary safe for Tourists ?
प्राकृतिक रूप से खूंखार होने के बाद भी विशेषज्ञों की राय में बाघ किसी पर यूहीं आक्रमण नहीं करता ।इसलिए वह बस्ती से दूर घने जंगलों में रहता है। और तो और दिन में छुप कर रहता है। परिस्थितियों से मजबूत होने की वजह से तथा भूख से पीड़ित होने के कारण वह हमला करता है।
जिम कॉर्बेट का भी कहना था बाघ बूढ़ा होकर लाचार हो गया हो , जख्मी होने से उसके दांत , पंजे ,टूट गए हो या फिर परिस्थितियां उत्पन्न हो गई हों तभी बाघ इंसानों पर हमला करता है।
बेतला अभ्यारण्य में वन विभाग के ओर से ट्रैक कैमरे भी जगह – जगह पर लगाए गए है । ज्यादातर कैमरे ऐसे स्थानों पर लगाए गए हैं जहां जानवर पानी पीने जाते है।
इन कैमरों से बाघों और अन्य वन्य जिवी के रात के क्रिया – कलापों की रिकॉर्डिंग की जाती है । जिससे उनकी संख्या और उपस्थिति का सटीक अनुमान लगाने में मदद मिल सके ।
बेतला में बाघ की उपस्थिति पूरे झारखंड राज्य की गरिमा को बढ़ते रहेगी ।
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