रजरप्पा मन्दिर,आस्था की धरोहर मां छिन्नमस्तिके सिद्धपीठ | Rajrappa Mandir | 7 Famous Ancient Temples at Rajrappa

Rajrappa Mandir

झारखंड की राजधानी रांची से लगभग 80 किलोमीटर की दूरी पर रामगढ जिले के रजरप्पा नामक जगह पर  मां छिन्नमस्तिके का यह मंदिर स्थित  है। रजरप्पा के भैरवी-भेड़ा और दामोदर नदी के संगम पर स्थित मां छिन्नमस्तिके मंदिर आस्था की धरोहर है।

असम के कामाख्या मंदिर के बाद दुनिया के दूसरे सबसे बड़े शक्तिपीठ के रूप में विख्यात मां छिन्नमस्तिके मंदिर अर्थात Rajrappa Mandir  काफी लोकप्रिय है। रजरप्पा का यह सिद्धपीठ केवल एक मंदिर के लिए ही विख्यात नहीं है।

छिन्नमस्तिके मंदिर के अलावा यहां महाकाली मंदिर, सूर्य मंदिर, दस महाविद्या मंदिर, बाबाधाम मंदिर, बजरंग बली मंदिर, शंकर मंदिर और विराट रूप मंदिर के नाम से कुल 7 मंदिर हैं। पश्चिम दिशा से दामोदर तथा दक्षिण दिशा से कल-कल करती भैरवी नदी का दामोदर में मिलना मंदिर की खूबसूरती में चार चांद लगा देता है।

Rajrappa Mandir Image

रजरप्पा जलप्रपात में बसी हैं माँ छिन्नमस्तिके (  Rajrappa Waterfalls / Rajrappa Falls  )

दामोदर और भैरवी के संगम स्थल के समीप ही मां छिन्नमस्तिके का मंदिर स्थित है। मंदिर की उत्तरी दीवार के साथ रखे एक शिलाखंड पर दक्षिण की ओर मुख किए माता छिन्नमस्तिके का दिव्य रूप अंकित है। मंदिर के निर्माण काल के बारे में पुरातात्विक विशेषज्ञों में मतभेद है। किसी के अनुसार मंदिर का निर्माण 6,000 वर्ष पहले हुआ था तो कोई इसे महाभारत युग का मानता है। यह दुनिया के दूसरे सबसे बड़े शक्तिपीठ के रूप में जाना जाता है। 

Rajrappa Waterfalls image

मां छिन्नमस्तिके मंदिर

मां छिन्नमस्तिके मंदिर के अंदर स्थित शिलाखंड में मां की 3 आंखें हैं। बायां पांव आगे की ओर बढ़ाए हुए वे कमल पुष्प पर खड़ी हैं। पांव के नीचे विपरीत रति मुद्रा में कामदेव और रति शयनावस्था में हैं। मां छिन्नमस्तिके का गला सर्पमाला तथा मुंडमाल से सुशोभित है। बिखरे और खुले केश, जिह्वा बाहर, आभूषणों से सुसज्जित मां नग्नावस्था में दिव्य रूप में हैं।

दाएं हाथ में तलवार तथा बाएं हाथ में अपना ही कटा मस्तक है। इनके अगल-बगल डाकिनी और शाकिनी खड़ी हैं जिन्हें वे रक्तपान करा रही हैं और स्वयं भी रक्तपान कर रही हैं। इनके गले से रक्त की 3 धाराएं बह रही हैं।

मंदिर का मुख्य द्वार पूरबमुखी है। मंदिर के सामने बलि का स्थान है। बलि स्थान पर प्रतिदिन औसतन 100-200 बकरों की बलि चढ़ाई जाती है। मंदिर की ओर मुंडन कुंड है। इसके दक्षिण में एक सुंदर निकेतन है जिसके पूर्व में भैरवी नदी के तट पर खुले आसमान के नीचे एक बरामदा है। इसके पश्चिम भाग में भंडारगृह है। 

maa chhinnmastike image

मां छिन्नमस्तिके मंदिर के अंदर स्थित शिलाखंड में मां की 3 आंखें हैं। बायां पांव आगे की ओर बढ़ाए हुए वे कमल पुष्प पर खड़ी हैं। पांव के नीचे विपरीत रति मुद्रा में कामदेव और रति शयनावस्था में हैं। मां छिन्नमस्तिके का गला सर्पमाला तथा मुंडमाल से सुशोभित है। बिखरे और खुले केश, जिह्वा बाहर, आभूषणों से सुसज्जित मां नग्नावस्था में दिव्य रूप में हैं।

दाएं हाथ में तलवार तथा बाएं हाथ में अपना ही कटा मस्तक है। इनके अगल-बगल डाकिनी और शाकिनी खड़ी हैं जिन्हें वे रक्तपान करा रही हैं और स्वयं भी रक्तपान कर रही हैं। इनके गले से रक्त की 3 धाराएं बह रही हैं।

मंदिर का मुख्य द्वार पूरबमुखी है। मंदिर के सामने बलि का स्थान है। बलि स्थान पर प्रतिदिन औसतन 100-200 बकरों की बलि चढ़ाई जाती है। मंदिर की ओर मुंडन कुंड है। इसके दक्षिण में एक सुंदर निकेतन है जिसके पूर्व में भैरवी नदी के तट पर खुले आसमान के नीचे एक बरामदा है। इसके पश्चिम भाग में भंडारगृह है। 

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रुद्र भैरव मंदिर के नजदीक एक कुंड है। मंदिर की भित्ति 18 फुट नीचे से खड़ी की गई है। नदियों के संगम के मध्य में एक अद्भुत पापनाशिनी कुंड है, जो रोगग्रस्त भक्तों को रोगमुक्त कर उनमें नवजीवन का संचार करता है।

यहां मुंडन कुंड, चेताल के समीप ईशान कोण का यज्ञ कुंड, वायु कोण कुंड, अग्निकोण कुंड जैसे कई कुंड हैं। दामोदर के द्वार पर एक सीढ़ी है। इसका निर्माण 22 मई 1972 को संपन्न हुआ था। इसे तांत्रिक घाट कहा जाता है, जो 20 फुट चौड़ा तथा 208 फुट लंबा है। यहां से भक्त दामोदर में स्नान कर मंदिर में जा सकते हैं। 

दामोदर और भैरवी नदी का संगम स्थल भी अत्यंत मनोहारी है। भैरवी नदी स्त्री नदी मानी जाती है जबकि दामोदर पुरुष। संगम स्थल पर भैरवी नदी ऊपर से नीचे की ओर दामोदर नदी के ऊपर गिरती है। कहा जाता है कि जहां भैरवी नदी दामोदर में गिरकर मिलती है उस स्थल की गहराई अब तक किसी को पता नहीं है।

मां छिन्नमस्तिके की महिमा की पौराणिक कथाएं

मां छिन्नमस्तिके की महिमा की कई पुरानी कथाएं प्रचलित हैं। प्राचीनकाल में छोटा नागपुर में रज नामक एक राजा राज करते थे। राजा की पत्नी का नाम रूपमा था। इन्हीं दोनों के नाम से इस स्थान का नाम रजरूपमा पड़ा, जो बाद में रजरप्पा हो गया। 

एक कथा के अनुसार एक बार पूर्णिमा की रात में शिकार की खोज में राजा दामोदर और भैरवी नदी के संगम स्थल पर पहुंचे। रात्रि विश्राम के दौरान राजा ने स्वप्न में लाल वस्त्र धारण किए तेज मुख मंडल वाली एक कन्या देखी।

उसने राजा से कहा – हे राजन, इस आयु में संतान न होने से तेरा जीवन सूना लग रहा है। मेरी आज्ञा मानोगे तो रानी की गोद भर जाएगी। 

राजा की आंखें खुलीं तो वे इधर-उधर भटकने लगे। इस बीच उनकी आंखें स्वप्न में दिखी कन्या से जा मिलीं। वह कन्या जल के भीतर से राजा के सामने प्रकट हुई। उसका रूप अलौकिक था। यह देख राजा भयभीत हो उठे।

राजा को देखकर देख वह कन्या कहने लगी- हे राजन, मैं छिन्नमस्तिके देवी हूं। कलियुग के मनुष्य मुझे नहीं जान सके हैं जबकि मैं इस वन में प्राचीनकाल से गुप्त रूप से निवास कर रही हूं। मैं तुम्हें वरदान देती हूं कि आज से ठीक नौवें महीने तुम्हें पुत्र की प्राप्ति होगी। 

देवी बोली- हे राजन, मिलन स्थल के समीप तुम्हें मेरा एक मंदिर दिखाई देगा। इस मंदिर के अंदर शिलाखंड पर मेरी प्रतिमा अंकित दिखेगी। तुम सुबह मेरी पूजा कर बलि चढ़ाओ। ऐसा कहकर छिन्नमस्तिके अंतर्ध्यान हो गईं। इसके बाद से ही यह पवित्र तीर्थ रजरप्पा के रूप में विख्यात हो गया।

एक अन्य कथा के अनुसार एक बार भगवती भवानी अपनी सहेलियों जया और विजया के साथ मंदाकिनी नदी में स्नान करने गईं। स्नान करने के बाद भूख से उनका शरीर काला पड़ गया। सहेलियों ने भी भोजन मांगा। देवी ने उनसे कुछ प्रतीक्षा करने को कहा। 

बाद में सहेलियों के विनम्र आग्रह पर उन्होंने दोनों की भूख मिटाने के लिए अपना सिर काट लिया। कटा सिर देवी के हाथों में आ गिरा व गले से 3 धाराएं निकलीं। वह 2 धाराओं को अपनी सहेलियों की ओर प्रवाहित करने लगीं। तभी से ये छिन्नमस्तिके कही जाने लगीं।

रजरप्पा के स्वरूप में अब बहुत परिवर्तन आ चुका है। तीर्थस्थल के अलावा यह पर्यटन स्थल के रूप में भी विकसित हो चुका है। आदिवासियों के लिए यह त्रिवेणी है। मकर संक्रांति के मौके पर लाखों श्रद्धालु आदिवासी और भक्तजन यहां स्नान व चौडाल प्रवाहित करने तथा चरण स्पर्श के लिए आते हैं। अब यह पर्यटन स्थल का मुख्य केंद्र है।

रजरप्पा कैसे पहुंचे ? How to Reach Rajrappa ?

झारखंड की राजधानी रांची से लगभग 80 ,बोकारो से 60 ,धनबाद से 96 और हज़ारीबाग से 75  किलोमीटर की दूरी पर स्थित है  मां छिन्नमस्तिके की मंदिर।  मंदिर के निकट ठहरने के लिए उत्तम व्यवस्था है। मंदिर तक जाने के लिए पक्की सड़क है। यह पर्यटन स्थल का मुख्य केंद्र है। सुबह से शाम तक मंदिर पहुंचने के लिए बस, टैक्सियां एवं ट्रैकर उपलब्ध हैं। 

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रजरप्पा मंदिर की एक झलक | Rajrappa Image Gallery

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Rajrappa Mandir in which State ?

Rajrappa Mandir is Located at dist. Ramgarh in the state of Jharkhand .

Rajrappa Mandir Direction

Rajrappa Mandir Google Map Location https://goo.gl/maps/1ax6HYAqHawFyku89

4 thoughts on “रजरप्पा मन्दिर,आस्था की धरोहर मां छिन्नमस्तिके सिद्धपीठ | Rajrappa Mandir | 7 Famous Ancient Temples at Rajrappa”

  1. Security guard and panda always take money for puja. Please take proper action against panda and security guard

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  2. Bali pratha in temple is very bad system .The temple shuld be vacant by panda and security they are bhrast in riswat .No allow non veg hotel in mandir parisar .There is no educated pujari is present .Yadi aisa nahi huaa to Mata Shakti mandir me pravesh nahi karengi. Jo ho rraha hai sab drama hai. Jay mata chhinn mastak.

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  3. रजरप्पा मन्दिर की जानकारी बहुत ही रोचक है। माँ छिन्नमस्तिके का सिद्धपीठ न केवल आस्था का प्रतीक है, बल्कि इसकी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व भी अविस्मरणीय है। इस पोस्ट ने मुझे और अधिक जानने के लिए प्रेरित किया है। धन्यवाद!

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