असुर जनजाति के मृत शरीर को कहा दफनाते हैं ?

झारखण्ड के इन 3 जगहों पर नवरात्र में रावण और महिषासुर की होती है पूजा , जानें क्यों …

क्यों आप भी आश्चर्य हो गए ? यह जान कर की झारखंड में कुछ ऐसे भी जगह हैं जहां रावण और महिषासुर को देवता माना जाता है साथ ही उनकी पूजा भी की जाती है ।

आम तौर पर हम सभी दशहरा जैसे त्योहार बड़े ही ख़ुशी और हर्षोल्लास से मानते हैं। पर हमारे झारखण्ड के कुछ इलाकों में कुछ ऐसे जनजाति व समुदाय के लोग भी रहते हैं जो दुर्गा पूजा या दशहरा जैसे पर्व को मानाने से कतराते हैं।

रावण और महिषासुर : देवता एवं पूर्वज 

दुर्गा पूजा में देवी दुर्गा और दशहरा में भगवान राम को नहीं पूजा जाता है बल्कि महिषासुर और रावण को कुलदेवता माना जाता है । दुर्गा पूजा और दशहरा में जश्न की जगह मानते हैं शोक , तो चलिए जानते है थोड़े विस्तार से ।

और तो और वह भगवन राम या माँ दुर्गे की पूजा अर्चना करने के बजाय रावण व महिषासुर को अपना देवता मानते हैं साथ ही उनकी पूजा-अर्चना किया करते हैं।

असुर समाज के कई जातियां दुर्गा पूजा में मनाती हैं शोक

झारखंड के गुमला जिले में बिशुनपुर और डुमरी प्रखंड में रहने वाले असुर प्रजाति के लोग भी नवरात्र में मां दुर्गा की पूजा-अर्चना नहीं करते है। इस प्रजाति के लोगों का मानना है कि वे सभी महिषासुर के वंशज है, इस कारण नवरात्र में इन लोगों में दुःख का माहौल रहता है। 

दुर्गा पूजा नहीं मानने की परंपरा

दुर्गा पूजा नहीं मनाने की उनकी यह परंपरा सदियों से चली आ रही हैं और इस दौरान असुर प्रजाति परिवार की महिला सदस्य पूरी तरह से मातमी वेशभूषा में रहती हैं। इस असुर प्रजाति के सदस्य न तो किसी पूजा पंडालों में जाकर दर्शन करते है और न ही नवरात्र में किसी प्रकार के जश्न में शामिल होते हैं।

असुर जनजाति पर अध्ययन करने वाले जानकारों का कहना है कि असुर समाज शुरु से ही जंगलो में निवास करता आया है और ये लोग शुरु से ही भैंस की पूजा करते आए हैं, क्योंकि मां दुर्गा ने ही महिषासुर का सर्वनाश किया था। इसलिए ये लोग मां दुर्गा की पूजा आराधना नहीं करते और दुर्गा पूजा के दौरान शोक के माहौल में रहते हैं।

महिषासुर का शहादत दिवस

यहां मनाया जाता है महिषासुर का शहादत दिवस । जब पूरे देश में दुर्गात्सव का जश्न रहता है, तो गुमला के सुदूर पहाड़ियों और सिंहभूम इलाके में कई जगहों पर महिषासुर का शहादत दिवस भी मनाया जाता है। कई जगहों पर महिषासुर पूजे भी जाते हैं।

वर्ष 2011 की जनगणना के मुताबिक झारखंड में असुरों की आबादी करीब 22 हजार है और आदिम जनजातियों में असुर अति पिछड़ी श्रेणी में आती हैं। 

यह भी जानें : नगवंशियों का खोया राज्य – नवरतनगढ़

महिषासुर के वंशज

इस समाज में ऐसी मान्यता है कि वे लोग महिषासुर के वंशज है। इन समुदायों को ये भी जानकारी मिलती है कि वह आर्यो-अनार्यां की लड़ाई थी। इसमें महिषासुर मार दिए गए, कई जगहों पर लोग महिषासुर को राजा भी माना जाता है।

इस समाज के लोग नवरात्र की शुरुआत के साथ दशहरा तक यानी दस दिनों तक शोक मनाते हैं। इस दौरान किसी किस्म के रीति-रस्म या परम्परा का निर्वहन नहीं होता। बड़े-बुजुर्गां के बताए गए नियमों के तहत उस रात एहतियात बरते जाते हैं, जब महिषासुर का वध हुआ था।

असुर समाज में यह मान्यता है कि महिषासुर का असली नाम हुडुर दुर्गा था, वह महिलाओं पर हथियार नहीं उठाते थे, इसलिए देवी दुर्गा को आगे कर उनकी छल से हत्या कर दी गई।

संताल की भी कई जनजातियां रावण को मानती है अपना वंशज

संताल परगना प्रमंडल के गोड्डा, राजमहल और दुमका के भी कई इलाकों में विभिन्न जनजाति समुदाय के लोग रावण को अपना वंशज मानती है और इन क्षेत्रों में कभी रावण वध की परंपरा नहीं रही है और न ही नवरात्र में ये मां दुर्गा की पूजा-अर्चना करते हैं। बल्कि यहां नवरात्र में रावण की पूजा की जाती है ।

Follow Us on Facebook PageClick Here
Follow Us on Instagram PageClick Here
Join Telegram GroupClick Here
Join Whatsapp GroupClick Here

असुर जनजाति के मृत शरीर को कहा दफनाते हैं ?

“सासन” नामक अपने आँगन में असुर जनजाति मृत शरीर को दफनाते हैं।

Leave a Comment